(ई लघुकथा डॉ रामनिवास ‘मानव’ के लघुकथा-संग्रह ‘घर लौटते कदम’ के श्री सूर्यदेव पाठक ‘पराग’ के कइल भोजपुरी अनुवाद ‘एकमुश्त समाधान’ से लिहल गइल बा।)
जब ऊ मजदूर रहले, त पैदल फैक्ट्री जात रहले। दोसर कई लोग साइकिल पर जात रहे। ओह लोग के देखके ऊ सोचस— “काश, उनको लगे साइकिल रहित !”
जब ऊ क्लर्क भइले, त उहो साइकिल ले लिहले। अब लगे से जात मोटर साइकिल देखस,
त निराश
हो जास। सोचस—“उनको लगे मोटर साइकिल होखे के चाहीं।”