(ई लघुकथा डॉ रामनिवास ‘मानव’ के लघुकथा-संग्रह ‘घर लौटते कदम’ के श्री सूर्यदेव पाठक ‘पराग’ के कइल भोजपुरी अनुवाद ‘एकमुश्त समाधान’ से लिहल गइल बा।)
जब ऊ मजदूर रहले, त पैदल फैक्ट्री जात रहले। दोसर कई लोग साइकिल पर जात रहे। ओह लोग के देखके ऊ सोचस— “काश, उनको लगे साइकिल रहित !”
जब ऊ क्लर्क भइले, त उहो साइकिल ले लिहले। अब लगे से जात मोटर साइकिल देखस,
त निराश
हो जास। सोचस—“उनको लगे मोटर साइकिल होखे के चाहीं।”
जब ऊ मैनेजर भइले, त उनका कार मिल गइल। अब ऊ कोठी का दरवाजा पर कार में बइठस आ फैक्ट्री का गेट पर उतरस । अब ऊ सचहूं बहुत खुश रहले, उनकर
मनोकाम ना जे पूरा हो गइले रहे।
बाकिर धीरे—धीरे उनकर स्वास्थ्य खराब होखे लागल। डॉक्टर सलाह दिहले कि उनका रोज नियम
से
दू-चार किलोमीटर पैदल चले के चाहीं। एह से
अब उनकर कार गैरिज
में खड़ा रहेला आ ऊ पैदल फैक्ट्री आवत—जात रहेले।
यही है जीवन-चक्र.
जवाब देंहटाएंमन बड़ा खुश भईल । हमरो पोस्ट पर आवे के कोशिश करीं । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट 'राही मासूम रजा' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंएही से भगवान बुद्ध कह गइलन कि इहे इच्छा सभे दुख के कारण बा।
जवाब देंहटाएंआपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआपका पोस्ट बहुत ही अच्छा लगा .। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । नव वर्ष की अशेष शुभकामनाए ।
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