मंगलवार, 31 मई 2011

भोजपुरी आंदोलन के पहिले जरूरी बा अंग्रेजी के भगावल

एक-दू दिन पहिले भोजपुरी वेबसाइट अँजोरिया पर एगो लेख आइल बा जवना में राजस्थानी के बहाने भोजपुरी के बात कइल गइल बा। ओह लेख के रउरा ईंहवा पर्ह सकतानी। ओपर हमार जवन प्रतिक्रिया रहे हम ओकरा के एह पन्ना पर दे रहल बानी। हमार ई प्रयास हो सकेला कि नाया होखो चिट्ठा-क्षेत्र में काहे कि हम अलग-अलग कइल आपन प्रतिक्रिया के भी लेख रूप में देत रहेम। अब पर्हीं हमार प्रतिक्रिया लेकिन अँजोरिया आला लेख देखल जरूरी बा। ई प्रतिक्रिया संपादक, अँजोरिया के संबोधित कके लिखल बा।

"........बाकिर ए फेर में मत रहीं कि भोजपुरी के सरकार से मान्यता मिलला के बाद कवनो फायदा होखे वाला बा। जइसे ई सरकार के मानल भासा बनी वइसहीं चोर-चुहार हाजिर होके सब कुछ बरबाद कर दिहन सन। जवना आदमी के भोजपुरी बोले में शरम लागता काल्हे ऊहे भोजपुरी के महान बिदवान आ साहित्यकार हो जाई।

अब बात रहल सरकार के भोजपुरी के त हिन्दी के हाल सभे जानता। भोजपुरी जब सरकार द्वारा मान लेवल जाई त एकरो दशा हिन्दी से बदतर हो सकेला लेकिन अच्छा ना। जब ले अंग्रेजी के कुत्ता ए देश में हर गली में घूमी आ काटी तब ले भारत के कवनो भाषा के सम्मान संभव नइखे। होखे के ई चाहीं कि भोजपुरी इलाका में सारा काम भोजपुरी में होखो, अदालत से दोकान तक बाकिर जब ई सब हिन्दी में होते नइखे त भोजपुरी के बारे में का कहल जाव?

जवना भारतीय भाषा के स्वीकृति मिल चुकल बा ओकरे हाल का बा? कुछ साहित्यकार लोग आपन काम चला लेता एतने नू! चाहे ऊ कवनो भाषा होखे। अब लक्ष्य भोजपुरी के आगे ले जाएके नइखे, अंग्रेजी के भगावे के बा। जब अंग्रेजी भाग जाई तब भोजपुरी के ओकर हक बिना दिक्कत के मिल जाई।

एगो बात त कहिए दीं कि रउरा से जब हम फोन पर बात कइनी त भोजपुरी में शुरु कइनी लेकिन रउरा हमरा से हिन्दिए में बतिइनी। बीच बीच में हम जब हिन्दी छोड़ के भोजपुरी बोले के चहनी रउआ हिन्दिए बोलनी। अब देखीं एह बात में कवनो जादे ओजन नइखे लेकिन एह बात से कुछ निकलत त बरले बा। लेकिन राउर ई रोज के मेहनत आ प्रयास भोजपुरी के ओही लोग के जोड़े में सक्षम बा जे भोजपुरी से मतलब रखे के चाहता। एसे का होई? एसे त ईहे होई कि हमनी के अपने में भोजपुरी-भोजपुरी के हल्ला करत रहेम सन। जे भोजपुरी से जुड़ल बा ऊहे भोजपुरी किताब, वेबसाइट से मतलब रखले बा। माने एक तरह से देखल जाव त लेखक आपन किताब लेखक के छाप-छाप के देता आ मने-मने खुश होता। अब रउआ बताईं कि एसे भोजपुरी के प्रचार-प्रसार होता कि ना? जे पहिले से भोजपुरी के मानता ऊहे एमें शामिल बा। शहर के बात छोड़ दिआव गाँव में अब नयका फैशनप्रिय लोग हिन्दी बोलल शुरु क देले बा, ऊहो एसे कि ऊ अंग्रेजी ना बोल सके(अइसन नइखे कि ओकरा हिन्दी से बड़ा प्रेम बा।) त जब लोग हिन्दी से दूर भागे के चाहता त भोजपुरी के का बात कइल जाव। सरकार पिछला 64 साल में अइसन एको काम करे के ना चाह्ल जवना से आपन देश आगे बढ़े। बस एतने कइल गइल जवना से लोग के भुलिआवल जा सके। पिछला साठ साल से भोजपुरी खातिर जेतना हल्ला भइल ऊ गलत ना कहल जा सके लेकिन ओकर कवनो असर कहाँ बा?

एसे खाली कल्पना में रहला से ना होई। सोच-समझ के आगे बढ़े के पड़ी कि आखिर भाषा के समस्या के जड़ कहाँ बा? कवनो राज्य में तनी-मनी नौटंकी से भाषा के कवनो फायदा होता, ई सोचल ठीक नइखे लागत। नेता आ मन्त्री के दिमाग से ना देश के भलाई के दिमाग के सोचल बात सही होई। पन्द्रे अगस्त के दू गो लड्डू बाँट के गीत गवला से देश में आजादी नइखे आइल। ..........."

चंदन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ईहाँ रउआ आपन बात कह सकीले।