शनिवार, 9 जुलाई 2011

आम आदमी(गजल)


आखिर के बाS इहाँ आम आदमी।
रोज पूछेला ई सुबह शाम आदमी।

आम सय में आ ई चार आना में
बजारे बिकाता सरेआम आदमी।

कुत्तो आदमी कह के गारी देता
खूबे कमइले बाS नाम आदमी।


लइकन के दूध भेंटत नइखे
इहाँ कतना उड़वले बाS जाम आदमी।

धराइल बाS किडनी बेचत में जे
ऊ घूमले रहे चारो धाम आदमी।

बात कइल प्रेम के जे भी ओकर
दबले बाS लाते पैगाम आदमी।

दोस्ती, प्यार से ले के माँ-बाप तक
कइले बाS तय सबके दाम आदमी।

दाम के मामला में बुझाला कहाँ
कि आदमी आम हS कि आम आदमी।

एने पी के करेला अराम आदमी
केहू पीएला दिनभर ई घाम आदमी।

धरम तS रहे बहुत इहाँ तबहूँ
काहे हो गइल बाS नाकाम आदमी।

का करिहन लाख भगतसिंह मिलके
जब आपन भइल बाS गुलाम आदमी।

2 टिप्‍पणियां:

  1. ग़ज़ल अच्छी है। इस तरह के विषय पर स्थानीय प्रचलित धुनों पर गाये जाने वाले गीत प्रचलित हो कर लोकगीत का स्थान ले लेते हैं।

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  2. बहुत अच्छा गजल उहो भोजपुरी में मजा आ गइल...
    बहुत बहुत धन्यवाद चंदन भाई...

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ईहाँ रउआ आपन बात कह सकीले।