शनिवार, 24 अगस्त 2013

भकोलवा हीरो हो गइल (भोजपुरी एकांकी) - अंतिम भाग



(चउथका दृस्य)

(नेताजी के डेरा। बी० ओ०, हेडमास्टर, बाबाजी आ पुलिस के दरोगा बइठल बाड़े।)

बी० ओ० का आनंदी बाबा! रउरा त मुर्दो के खून पी जानी! आ रउरा के पाँच हजार रोपेया दे के भेजनी कि लोग के समझा-बुझा के, बोका बना के चुप कराईं त रउरा के त दू गो कवलेजिया लइके भगा देलें सन। बेकारे बाबा बानी रउरा।
बाबाजी देखीं झीटू जी! ऊ लइकवा हमरे के बड़-बड़ दोहा सुनावे लगलन सन। अब का करती, भाग अइनी। ओकनी के बात आ दोहा त ठीके रहे, हमनी लेखा ठगी के मंतर थोरे रहे।
(ताले ठगलाल के आगमन। ठगलाल सब के परनाम-सलाम करऽतारें।)
हेडमास्टर - आवऽ ठगलाल, तूँ ही बाकी रलऽ ह। (नेताजी का ओर इसारा करत) ई ठगलाल हउवें, इनके दोकान से सामान किन के इस्कूल में जाला।
नेताजी - देखऽ लोग। दरोगो आइले बाड़न। इनके जाँच करे के बा। अब साफ-साफ बात बा। ठगलाल पचास हजार, हेडमास्टर एक लाख आ बी० ओ० डेढ़ लाख देस तब जा के कोट-पुलिस सलटी ना त सब जाना एही में झोंकाई रहऽ। आ बाबा से का लेवे के बा! साधू त हमनी के राहे देखावेला!
हेडमास्टर बड़ा ढेर पइसा माँगऽतानी धनीराम जी! (चिहा के)
नेताजी ढेर बा? 40 गो लइका मर गइल आ ओकरो खातिर सब के घर के दू-दू लाख अबहीं दिवावे के बा। तहरा लोग से त कमे मँगाइल बा। आपन आदमी हउअ लोग त कमे मँगले बानी ना त पाँच लाख से कम ना मँगाइत। (कुछ देर सभे चुप बा। तब नेता उठ के कहऽतारें) देखऽ लोग जादे समय नइखे। अरे देबऽ लोग तबे नू फेर कमइबऽ लोग। पइसा द, पइसा कमा। पइसे से नू पइसा कमाइल जाला। आ एतना देबऽ लोग त जाँच में तूँ लोग जवन कहबऽ तवने देखा दिआई।
ठगलाल नेताजी ठीक कहऽतानी। हम त पइसा लेइए आइल बानी।

भकोलवा हीरो हो गइल (भोजपुरी एकांकी)



 (पहिलका दृस्य)
  



(आपिस में बी० ओ० बइठल बा। टेबुल-कुर्सी लागल बा। हेडमास्टर दुआरी पर आवऽता।)

हेडमास्टर (हान जोर के) - परनाम बी० ओ० साहेब!
बी० ओ० - आईं-आईं। पनाम-परनाम! कहीं। सब ठीक बा नू?
हेडमास्टर - रउरा किरपा से आ भगवान के दया से सब ठीक बा।
बी० ओ० - तब! कइसे-कइसे एने चलल बानी?
हेडमास्टर लीं! रउरा त इयादे नइखे! आज पनरे तारीख नू ह! राउर सेवा करे आइल बानी।
बी० ओ० - हँ जी, हमरा त धेयाने ना रलऽ।
हेडमास्टर - ए महीना में बीस हजार बचवले बानी रउआ खातिर!
बी० ओ० - धीरहीं-धीरहीं बोलीं। डेरा पर नू आवे के चाहत रलऽ। (हेडमास्टर पइसा निकालऽता। बी० ओ० हाथ आगे बढ़ा के) चलीं, जब आइए गइल बानी त देइए दीं। ई बी० ओ० झीटू तिवारी आइल लछमी के जाए ना देस।
हेडमास्टर - हँ-हँ, जरूर! आपन हिस्सा लेइए लीं त ठीक रही। ना त हमरा भारी होखे लागी। (देते में कहऽतारें तब बी० ओ० पइसा ले के कहऽता- जय लछमी जी, जय लछमी जी। हेडमास्टर खड़ा होके) अब चलऽतानी। कवनो बात होई त राउर नंबर बड़ले बा, बतिआ लिहल जाई।
बी० ओ० - हँ, ठीक बा। बाकिर धेयान रहे ऊ नंबर चोरउका नंबर ह। खाली हमनिए लेखा आदमी जानेला। सरकार आ जनता नाहिए जाने। एसे तनी बचाइए के ओपर फोन धराएम।
हेडमास्टर - हँ हजूर। एकदम धेयान रही। परनाम!

रविवार, 15 अप्रैल 2012

श्रीहीरोचरितमानस : भोजपुरी के हास्य-व्यंग्य काव्य


भोजपुरी में हास्य-व्यंग्य के गीत तऽ ए घरी सुने के मिलऽता। किताब के हाल हमरा पता नइखे। सतेन्दर दूरदर्सी के कुछ किताब देखे के मौका मिलल बाऽ। एक दू बेर सुनहूँ के मौका मिलल बाऽ। हवन में 'स्वाहा' के आधार पर 'बबुआ तनी छींक दऽ', 'बबुआ तनी थूक दऽ' अइसन प्रयोग ऊ कइले बारन। अपना किताब में अपना के 'मंच के टंच कवि' लिखेवाला दूरदर्सी के बात खतम कऽ के हम आज एगो हास्य व्यंग्य के किताब के बात करे जा रहल बानी। 

एगो किताब रहे हमरा लगे। नाम रहे श्रीहीरोचरितमानस, भोजपुरी के हास्य-व्यंग्य काव्य। 14गो कांड रहे एमे आ तुलसीदास के मानस लेखा दोहा, सोरठा, चौपाई, छंद सब रहे। 50-60 पन्ना के होई ई किताब। बरा मजेदार रहे ई किताब, बाकिर केहू ले गइल, तऽ आज ले नाहिए मिलल हमरा। एकर कवि हमार शिक्छक सूर्यदेव पाठक 'पराग' जी बानी। 1978 में छपाइल एह किताब के एगो स्लोक हमरा इयाद बाऽ। अगर सही सही हमरा इयाद बाऽ, तऽ ऊ रहे- 

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

अइसन गाँव बना दे...



स्वाधीनता सेनानी और हिंदी-भोजपुरी के प्रसि़द्ध जनकवि रमाकांत द्विवेदी रमता जी के गीत आ गजल

अइसन गाँव बना दे

अइसन गाँव बना दे, जहां अत्याचार ना रहे।
जहां सपनों में जालिम जमींदार ना रहे।

सबके मिले भर पेट दाना, सब के रहे के ठेकाना
कोई बस्तर बिना लंगटे- उघार ना रहे।

सभे करे मिल-जुल काम, पावे पूरा श्रम के दाम
कोई केहू के कमाई लूटनिहार ना रहे।

सभे करे सब के मान, गावे एकता के गान
कोई केहू के कुबोली बोलनिहार ना रहे।

- 18.3.83

सोमवार, 21 नवंबर 2011

यात्रा-वृत्त (लघुकथा)



( लघुकथा डॉ रामनिवास मानव के लघुकथा-संग्रह घर लौटते कदमके श्री सूर्यदेव पाठक परागके कइल भोजपुरी अनुवाद एकमुश्त समाधानसे लिहल गइल बा।)


जब ऊ मजदूर रहले, त पैदल फैक्ट्री जात रहले। दोसर कई लोग साइकिल पर जात रहे। ओह लोग के देखके ऊ सोचसकाश, उनको लगे साइकिल रहित !
जब ऊ क्लर्क भइले, त उहो साइकिल ले लिहले। अब लगे से जात मोटर साइकिल देखस, निराश हो जास। सोचसउनको लगे मोटर साइकिल होखे के चाहीं।

बुधवार, 9 नवंबर 2011

आम चुनाव (लघुकथा)


जब मनोहर के उमिर पाँछ-छव बरिस हो गइल टो-टा के तनी-मनी पढ़े लागल एकदिन अखबार में ओकरा एगो समाचार लउकल- 'काल्ह से आम चुनाव शुरु' घरे आइल अपना बाबूजी से पूछलस- 'बाबूजी, आम चुनाव का होला?' बाबूजी कहलन कि बबुआ जब आम के ढेरी में से खराब सरल आम चुन के बाहर फेंक दियाव एकरे के आम चुनाव कहल जाला। मनोहर बात सुन के लागल आम के ढेरी से खराब आम चुन के एक ओरी फेंके। सब खराब आम चुनके अब छैंटी में बिटोर के फेंके चलल। 

रविवार, 6 नवंबर 2011

कवनो बेटा / जिउतिया ना करे / माई खातिर


आपन लिखल कुछ हाइकु ईहाँ दे रहल बानी।

कह ल ठंढ़ा
चांद गरम होखे
जा रहल बा ।

रविवार, 11 सितंबर 2011

तकनीकी छेत्र में सुतल बा भोजपुरिया लोग


भोजपुरी में कम्प्यूटर छेत्र में कवनो काम अबहीं ले ना हो सकल। एको गो साफ्टवेयर ना बन सकल। ना एको शब्दकोश, ना ब्राउजर, ना कुछुओ। एकरा खातिर भोजपुरिया लोग में पता ना कवनो रुचि बा कि ना? कुछ वेबसाइटन आ ब्लाग माने चिट्ठा के अलावा कुछुओ कहे लाएक काम अबहीं ले ना हो सकल। भोजपुरी अकादमी आ भोजपुरी से जुड़ल कवनो संगठन के ए सब में कवनो रुचि बा कि ना, ईहो साफ नइखे। ई सबसे चिन्तित होके आज एगो फ्यूल चाहे फ्यूअल नाम के एगो परियोजना से हम जुड़नी ह। अब आर्थिक सहायता आ मन होखला पर ई बा कि के आगे आई आ अपना भाषा में ए छेत्र में कुछ करे के चाही। हमरा समझ से भोजपुरी के कुछ समस्या एकरा मानकीकरण में आवेला। हम हिन्दी में राजेश जी ( ईहें के फ्यूल के कर्ता-धर्ता बानी) के जवन मेल कइले रहनी, ओकरे में से कुछ ईहाँ रख रहल बानी।

शनिवार, 27 अगस्त 2011

जन लोकपाल बिल एगो तमाशा त ना ह?


जन लोकपाल बिल का ह? एगो अइसन झुनझुना जवना से लोग हमेसा भुलाइल रहो। सरकार के नीति हमेसा एके साथे दूनो ओरी चले वाला लेखा होला। कुछ ओइसने नीति अन्ना के जन लोकपाल बिलो में बा।

ई बात एगो उदाहरन से साफ हो जाई।

शनिवार, 6 अगस्त 2011

तेली क नाटा आ झाँसा-पट्टी (लघुकथा)- बिगुल-1

केवनो गाँव में एगो तेली रहे। ऊ अपनी नाटा के अन्हवट के कोल्हू में नधल रहे…