रविवार, 15 अप्रैल 2012

श्रीहीरोचरितमानस : भोजपुरी के हास्य-व्यंग्य काव्य


भोजपुरी में हास्य-व्यंग्य के गीत तऽ ए घरी सुने के मिलऽता। किताब के हाल हमरा पता नइखे। सतेन्दर दूरदर्सी के कुछ किताब देखे के मौका मिलल बाऽ। एक दू बेर सुनहूँ के मौका मिलल बाऽ। हवन में 'स्वाहा' के आधार पर 'बबुआ तनी छींक दऽ', 'बबुआ तनी थूक दऽ' अइसन प्रयोग ऊ कइले बारन। अपना किताब में अपना के 'मंच के टंच कवि' लिखेवाला दूरदर्सी के बात खतम कऽ के हम आज एगो हास्य व्यंग्य के किताब के बात करे जा रहल बानी। 

एगो किताब रहे हमरा लगे। नाम रहे श्रीहीरोचरितमानस, भोजपुरी के हास्य-व्यंग्य काव्य। 14गो कांड रहे एमे आ तुलसीदास के मानस लेखा दोहा, सोरठा, चौपाई, छंद सब रहे। 50-60 पन्ना के होई ई किताब। बरा मजेदार रहे ई किताब, बाकिर केहू ले गइल, तऽ आज ले नाहिए मिलल हमरा। एकर कवि हमार शिक्छक सूर्यदेव पाठक 'पराग' जी बानी। 1978 में छपाइल एह किताब के एगो स्लोक हमरा इयाद बाऽ। अगर सही सही हमरा इयाद बाऽ, तऽ ऊ रहे- 


सर्वदूषणसम्पन्नम् विपन्नम् निजमेधया। 
वन्दे हीरो नरं नित्यं महाकाण्डप्रवर्तकम् ॥ 

एकरा के तुलसीदास के मानस के तीसरा स्लोक से तुलना कइल जा सकेला। 

वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम्। 
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते ॥ 

अब किताब तऽ हइलहीं नइखे, एसे ओकरा बारे में चाहे ओकर कवनो हिस्सा बतावल संभव नइखे। तबहूँ कुछ मिलल बाऽ, जवन ईहाँ देवल जा रहल बाऽ। 

एगो दोहा देखीं- 

पूर्व जन्म के पुन्न के, बा दूगो पहचान। 
फिलिमी हीरो बने या, नेता बने महान ॥ 

हालाकि आज के दिन नीचे के बात से मतभेद हो सकेला, बाकिर आज से 34-35 बरिस पहिले अइसन लिखल महत्व रखऽता। पर्हीं किताब के कुछ चउपाई- 

लड़िका अइसन लड़की लागी। लड़की सभ सब ड्रेस तियागी ॥ 
लड़की बान्हे लागी टाई। फूलपैंट आ कोट चढ़ाई ॥ 
काहे अब ऊ पहिरो साड़ी। काहे आपन रूप बिगाड़ी ॥ 
कपड़ा चुस्त बढ़ाई चुस्ती। पहिर लँगोटा लड़की कुस्ती ॥ 
अब ऊ नइखे दूर जमाना। लड़िका-लड़की एक समाना ॥ 
मरद बनाई घर में खाना।  अउर बाहरी काम जनाना ॥ 
पुरुष करी औरत के सेवा। सेवा के फल पाई मेवा ॥ 

पाँचवा सोपान के नाम बाऽ बूढ़विचारकाण्ड। ओमे के हई हिस्सा देखीं- 

देख-देख नवका पहिनाई। कइसे ना दिमाग अगिआई ॥ 
सटल देह में कपड़ा कइसे। झलके अंग सिरिजना जइसे ॥ 
लड़की देह उघार देखाई। तब लड़िको के मन उबि जाई ॥ 

किताब में स्कूल काण्ड, कॉलेज काण्ड, बूढ़विचार काण्ड, सिनेमा काण्ड, हीरोविचार काण्ड, होटल काण्ड, मेला काण्ड जइसन 14 गो कांड रहे। सिनेमा देखे के बेर हीरो कइसे जालन, एकर एगो नमूना देखीं- 

साथी सबसे बात करि, झटपट कर प्रोग्राम। 
हीरो सजधज के चले, जपत हिरोइन नाम ॥ 

संभवतः  होटल काण्ड के एगो ई दोहा- 

शंभु रहे कैलास पर, भाँग खाइ के मस्त। 
हीरो सबकुछ त्याग के, होटल के अभ्यस्त ॥ 

देखल जा सकेला। 

10:57-
अबगे दू गो आउर चउपाई पता चलल हऽ-


हीरो खूब खइनियो खाला। जहवाँ तहवाँ थूकत जाला ॥ 
हीरो आखिर हीरो होला। पीए फंटा कोकाकोला ॥ 


4 टिप्‍पणियां:

  1. बढि़या, बोली का असरदार प्रयोग, जो प्रभाव पैदा करने के लिए अच्‍छी-खासी भाषा तरस जाए.

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  2. हीरोचरितमानस के त एतने चउपाई पढ़िके मन मस्त हो गइल। हमके त पते ना रहे कि भोजपुरियो में अइसन रस से भरल ब्लाग बा। धन्यवाद चंदन जी

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  3. ई किताब के परिचय खूब निम्मन लागल।

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  4. भोजपुरी कम आती है पर फिर भी बहुत कुछ समझ मे आया है

    यूनिक तकनीकी ब्‍लाग

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