बुधवार, 9 नवंबर 2011

आम चुनाव (लघुकथा)


जब मनोहर के उमिर पाँछ-छव बरिस हो गइल टो-टा के तनी-मनी पढ़े लागल एकदिन अखबार में ओकरा एगो समाचार लउकल- 'काल्ह से आम चुनाव शुरु' घरे आइल अपना बाबूजी से पूछलस- 'बाबूजी, आम चुनाव का होला?' बाबूजी कहलन कि बबुआ जब आम के ढेरी में से खराब सरल आम चुन के बाहर फेंक दियाव एकरे के आम चुनाव कहल जाला। मनोहर बात सुन के लागल आम के ढेरी से खराब आम चुन के एक ओरी फेंके। सब खराब आम चुनके अब छैंटी में बिटोर के फेंके चलल। 
 
रात में मनोहर सुत गइल। ओकरा सपना आइल कि सब अमवा छैंटिए में बइठ के हल्ला करS तारन सन कि हम जादे सरल हम जादे सरल। रात भर सब आम मनोहर के सुते ना देलें सन। भोरे अपना बाबूजी से कहल कि हेंगS  सपना आइल रल। बाबूजी समझवलन- ' ईहे अमवा नू सांसद हउवन सन छैंटिया संसद'

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिन से अईसन पोस्ट खोजत रहनीहां । आज ऊ चीज मिल गईल । तहरा पोस्ट के पढ़कर बड़ा नीमन लागल । हमरो पोस्ट पर आके तनी कुछ कह जा भाई,तोहार इंतजार रही । धनवाद के साथ हजारीबाग एकदम मुफ्त।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ । पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद । चिंता मत करीह भाई जी अब त परिचय मिलिए गईल, आवल जाईल लागले रही ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आम चुनाव के माध्यम से आम लोगिन के चुनाव होला .. इकरा से बेसी भोजपुरी लिख ना पाइब!

    जवाब देंहटाएं
  4. जनलोकपाल पास होई त हमनियो के छांटे के मउका मिली।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही उत्कृष्ट रचना । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं

ईहाँ रउआ आपन बात कह सकीले।