सोमवार, 21 नवंबर 2011

यात्रा-वृत्त (लघुकथा)



( लघुकथा डॉ रामनिवास मानव के लघुकथा-संग्रह घर लौटते कदमके श्री सूर्यदेव पाठक परागके कइल भोजपुरी अनुवाद एकमुश्त समाधानसे लिहल गइल बा।)


जब ऊ मजदूर रहले, त पैदल फैक्ट्री जात रहले। दोसर कई लोग साइकिल पर जात रहे। ओह लोग के देखके ऊ सोचसकाश, उनको लगे साइकिल रहित !
जब ऊ क्लर्क भइले, त उहो साइकिल ले लिहले। अब लगे से जात मोटर साइकिल देखस, निराश हो जास। सोचसउनको लगे मोटर साइकिल होखे के चाहीं।
जब ऊ सेल्स-अफसर बनले, त ऊ मोटर साइकिल खरीद लिहले। अब उनका कारवालन से ईष्या होखे लागल। ऊ सोचसमोटर साइकिल से का, उनको लगे कार होइत, त बात बनित।
जब ऊ मैनेजर भइले, त उनका कार मिल गइल। अबकोठी का दरवाजा पर कार में बइठस आ फैक्ट्री का गेट पर उतरसअब ऊ सचहूं बहुत खुश रहले, उनकर मनोकामना जे पूरा हो गइले रहे।
बाकिर धीरेधीरे उनकर स्वास्थ्य खराब होखे लागल। डॉक्टर सलाह दिहले कि उनका रोज नियम से दू-चार किलोमीटर पैदल चले के चाहीं। एह से अब उनकर कार गैरिज में खड़ा रहेला आ ऊ पैदल फैक्ट्री आवतजात रहेले।

5 टिप्‍पणियां:

  1. मन बड़ा खुश भईल । हमरो पोस्ट पर आवे के कोशिश करीं । धन्यवाद ।

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  2. एही से भगवान बुद्ध कह गइलन कि इहे इच्छा सभे दुख के कारण बा।

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  3. आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  4. आपका पोस्ट बहुत ही अच्छा लगा .। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । नव वर्ष की अशेष शुभकामनाए ।

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ईहाँ रउआ आपन बात कह सकीले।