गुरुवार, 9 जून 2011

मंत्रीजी के फरमाइस(हास्य कविता)


शैम्पेन चाहीं टैंकर के टैंकर
ना चाहीं पंखा ना चाहीं कूलर
मंत्रीजी के अपना एसी चाहीं ।

जब बँटाये देस के दौलत
जइहें ऊहवां धउड़त-धउड़त
थोरका ना इनका बेसी चाहीं ।
ना चाहीं पंखा ना चाहीं कूलर
मंत्रीजी के अपना एसी चाहीं ।


चाहीं बोले के इनका अंगरेजी
सुनीं लोग एजी सुनीं लोग एजी
लेकिन कुरसी इनका देसी चाहीं ।
ना चाहीं पंखा ना चाहीं कूलर
मंत्रीजी के अपना एसी चाहीं ।

माल चाहीं असबाब चाहीं
नीमन चाहीं ना खराब चाहीं
लेकिन कपड़ा इनका बिदेसी चाहीं ।
ना चाहीं पंखा ना चाहीं कूलर
मंत्रीजी के अपना एसी चाहीं ।

कार ना इनका एरोप्लेन चाहीं
ना दोसर गाड़ी ना ट्रेन चाहीं।
हरदम दुधारू मवेसी चाहीं।
ना चाहीं पंखा ना चाहीं कूलर
मंत्रीजी के अपना एसी चाहीं ।

टोपी चाहीं बस एही देस के
सब कुछ आउर होS बिदेस के
कुछुओ ना इनका स्वदेसी चाहीं।
ना चाहीं पंखा ना चाहीं कूलर
मंत्रीजी के अपना एसी चाहीं ।

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